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बदला,, (हास्य एवं मनोरंजक कहानी)
लेखक:- #अमित_कुमार_झा
इस कहानी के किरदार:-
संजीव:- एक आवारा लड़का
राजू:- संजीव का दोस्त
सरोज:- शंकर माँझी का बेटा
शीला:- सरोज की गर्लफ्रेंड
नथुनी महतो:- शीला के पिता
लखन महतो:- शीला का भाई
अन्य:- बरफ वाला, लखन महतो के तीन-चार दोस्त तथा एक बारह साल का लड़का छोटू।

बदला,, सीन:- 01
(राजू और संजीव दोनों मित्र होते है। दोनों एक नंबर के नकारे और निकम्मे होते है। संजीव अमीर और राजू गरीब होता है। दोनों बस सारा दिन घर के बाहर घुमते रहते है, आवारागर्दी और तरह-तरह की शरारतें करते है। दोनों के घर वाले भी उससे परेशान होते है। लेकिन दोनों को अपने घर वालों को परेशान करने में मजा आता है। एक दिन राजू और संजीव कही जा रहे होते है। धूप तेज होती है तो दोनों छाता ओढ़े हुएे होते है। राजू छाता को पकड़े हुएे होता है। संजीव नए कपड़े, कोट, जूता पहने होता है और उसके आँखों पर चश्मा भी लगा होता है। और राजू फटा-पुराना कमीज और फटा हुआ पैंट पहने होता है। राजू बेसुरे आवाज में गीत गा रहा है और संजीव के साथ आगे बढ़ रहा है। राजू गीत गा रहा होता है:- जब दिल न लगे दिलदार हमारी गली आ जाना,,, तभी संजीव उसके सर पर एक थप्पड़ लगाता है और बोलता है।)
संजीव:- काहे डिस्टर्ब करते हो बे! चुप-चाप नहीं चल सकते। एक तो फटा हुआ बाँस के जईसन आवाज है और उपर से चिल्ला अईसे रहा है जईसे कि तुमरी नानी मर गयी हो। आने-जाने वाले लोग भी हँस रहे है। कुछ तो शरम करो। छोट बच्चा सब डर जायेगा तुमरा ई बिरहा सुन के। उन सब पर भी थोड़ा रहम खाओ।
(राजू अपने सर पर हाथ रख कर थोड़ा दुखी होते हुएे बोलता है)
राजू:- आज आपको हमारी आवाज फटा हुआ बाँस के जईसन लग रहा है। देख लिजियेगा एक दिन सारा भारत हमरे आवाज का दीवाना होगा। जहाँ भी देखियेगा बस लोग हमरा ही तारीफ करते मिलेंगे।
संजीव:- तारीफ नहीं गाली देते हुएे। और वो भी टॉप क्लास का गाली।
राजू:- अच्छा वो तो समय बताएगा भईया जी की कौन गाली खायेगा और किसकी तारीफ होगी।
संजीव(हाथ दिखाते हुएे):- खिच के देंगे न एक लपड़, सारा भूतमिरगी ऊतर जायेगा तुम्हारा। जबान लड़ाता है हमसे। चुप-चाप चलो नहीं तो इतना मारेंगे न कि बोलने के लायक नहीं रहेगा। ससुरी के हमसे जबान लड़ाता है।
(उसके बाद से राजू चुप हो जाता है और चुप-चाप संजीव के साथ आगे बढ़ता है। कुछ दूर जाने के बाद वह रूक जाता है। उसको देख कर संजीव भी रूक जाता है और राजू की ओर घुम कर बोलता है)
संजीव:- का हुआ बे, काहे रूक गया??
(राजू को दूर से ही एक बरफ वाला साईकिल नजर आता है, जिसे देख कर  राजू को बरफ खाने की इक्षा होती है और वह रूक जाता है, फिर  वह संजीव से बोलता है)
राजू(अपना हाथ आगे बढ़ाते हुएे):- वो देखिये भईया जी….
संजीव:- क्या है??
राजू:- बरफ!!
संजीव:- अच्छा, अच्छा!!
राजू:- खिलाईये न!!
संजीव:- क्या??
राजू:- बरफ।।
संजीव:- अभी सुबह का टाइम है, बरफ ठंडी होता है। अभी खाओगे तो सर्दी हो जायेगी। फिर कभी खा लेना। अभी चलो यहाँ से। बहुत जरूरी काम है।
(यह बोल कर संजीव एक कदम आगे बढ़ाता है, तभी राजू उसका हाथ पकड़ लेता है और बोलता है।)
राजू:- क्या भईया जी, अभी सुबह कहाँ है? दिन के ग्यारह बज गए। कुछ नहीं होगा! खिलाईये न!!
संजीव:- ग्यारह बज गए।
राजू:- हाँ!!
संजीव:- तब तो और नहीं खाना चाहिए।
राजू:- क्या?
संजीव:- यही बरफ।।
राजू:- काहे भईया??
संजीव:- दोपहर को बरफ खाने से सर्दी के साथ-साथ बुखार भी लग जाता है। दोपहर में तो कभी भी भूल के भी बरफ न खाना चाहिए।
राजू:- क्या भईया जी, हम तो बचपन से ही सुबह, शाम और दुपहरिया को बरफ खाते आ रहे है। आज तक कहाँ हुआ है कुछ हमको??
संजीव:- अच्छा!!
राजू:- हाँ भईया जी! अच्छा छोड़िये ये सब बात। खिलाईये न बरफ!  नहीं तो बरफ वाला चला जायेगा।
संजीव (फिर से उसके गाल पर एक थप्पड़ लगाते हुए):- बीस बार से ज्यादा बोले है कि कभी भी किसी सामान के जीद न किया करो। हर वक्त सब के पास पैसे नहीं होते है।
राजू (गाल पर हाथ रखे हुएे):- अच्छा तो आपके पास पैसा नहीं है। आप तो बोलते है कि हम करोड़पति बाप का एकलौता बेटा है। फिर भी आपको बरफ खाने के लिए पईसा नहीं है।
संजीव:- करोड़पति बाप के एकलौता बेटा है तो क्या सब तुमही पर लूटा दे।
राजू:- दो रूपिया तो लगता है भईया जी। आपके पास दो रूपिया भी नहीं है। अच्छा रुकिये हमरे पास होगा। हम निकालते है। जरा मेरा छाता पकड़िये।
(यह बोलते हुएे राजू अपने हाथ से छाता संजीव को थमाता है। संजीव छाता पकड़ते हुएे बोलता है।)
संजीव:- हाँ निकाल जल्दी से।
राजू:- इतना ऊतावला न होईये भईया जी। निकाल रहे है।
(उसके बाद राजू अपने पैंट के दाहीने जेब में हाथ लगाता है। लेकिन उस जेब में पैसा नहीं होता है। “कहाँ चला गया? कल तो इसी जेब में रखे थे। आज मिलिये नहीं रहा है।” उसके बाल दोनों का चेहरा उतर जाता है। फिर संजीव उससे कहता है)
संजीव:- दूसरा जेब में देखो न, कही उसमें रखा गया होगा।
राजू:- सही बोल रहे है भईया जी।
(उसके बाद राजू दूसरा जेब भी टटोलता है, लेकिन पैसा उसमें भी नहीं निकलता है। फिर राजू उदास हो कर संजीव से बोलता है)
राजू:- अरे भईया जी इसमें भी नहीं है। न जाने कहाँ रख दिये? मिल ही नहीं रहा है।
संजीव(उदास हो कर):- अब नहीं है पईसा तो रहने दो, फिर कभी खा लेंगे।
राजू:- हाँ याद आ गया, अंदर वाला जेब में रखे थे।
संजीव:- निकाल, निकाल.. जल्दी निकाल…
(उसके बाद राजू अंदर वाला जेब में हाथ लगाकर पैसा निकालता है। फिर संजीव छाता राजू को बढ़ाता है। राजू पैसा अपनी कमीज की जेब में रखता है और दोनों बरफ लेने के लिए आगे बढ़ते है। जब वे लोग बरफ वाला साईकिल के पास जाते है तो देखते है कि बरफ वाला तो वाला है ही नहीं। फिर राजू धीरे से बोलता है:- “यह कहाँ चला गया?” फिर एक बार जोर से बोलता है)
राजू:- कहाँ चले गए हो बरफ वाला??
(दूसरी ओर से आवाज आता है)
बरफ वाला:- ईहा है हो! का है बोलिये??
(राजू और संजीव जहाँ से आवाज आ रही होती है उधर घुम कर देखते है तो पाते है कि बरफ वाला पेशाब कर रहा है। उसे देख कर राजू बोलता है)
राजू:- बरफ खाना है।
बरफ वाला:- थोड़ा देर रुकिये, आते है।
(कुछ देर के बाद बरफ वाला वहाँ आता है और राजू से बोलता है)
बरफ वाला:- कितना बरफ चाहिए।
राजू:- दो।
बरफ वाला:- ठीक है, अभी देता हूँ।
(यह बोल कर बरफ वाला बरफ निकलने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है तभी संजीव बोलता है)
संजीव:- हाथ तो धो लियो पहले!!
बरफ वाला:- का भईया! कईसन बात करते हो, ई सुनसान रास्ता पर पानी कहाँ से मिले कि हाथ धोया जाए।
संजीव:- तो तुम हमे उसी हाथ से बरफ खिलागे जिस हाथ से……
(बरफ वाला संजीव की बात को काटते हुएे बोलता है।)
बरफ वाला:- कईसन बात करते है भईया? इस हाथ में कोई गंदा थोड़े ही लगा है।
संजीव:- गंदा नहीं लगा है तो क्या हुआ? हम उस हाथ से बरफ नहीं खा सकते।
बरफ वाला:- नहीं खा सकते तो हम चलते है। कवनों दोसर बरफ वाला आये तो खा लिजिएगा।
(यह बोल कर बरफ वाला आगे बढ़ने लगा। तभी राजू उसे रोकते हुएे कहता है।)
राजू:- अरे रुको भईया! इनकी बात का बुरा ना मानो। तुम बरफ निकालो।
संजीव(राजू से):- तुम उसके हाथ का बरफ खाओगे??
राजू:- अरे क्या हो गया भईया? आप भी किस ख्याल में डूबे रहते हो। इतना मुश्किल से तो दो रूपिया मिला है। अऊर वईसे भी हमको ईहा कौन देख रहा है। जरा हमको एक बात बताईए, अगर आप कही जा रहे है अऊर आपको शौच के उपर पचास या सौ का नोट गिरा हुआ मिले तो क्या करेंगे?
संजीव:- सबसे पहले देखेंगे कि अगल-बगल कोई आदमी तो नहीं है।
राजू:- फिर..!!
संजीव:- फिर उसको उठा लेंगे।
राजू:-फिर..!!!
संजीव:- फिर उसको धो कर जेब में रख लेंगे।
राजू:- हाँ, देखा आप भी वही करेंगे जो हम करेंगे। तो फिर इसमें नाकर-नुकुर काहे करते है। चुप-चाप खा लिजिये न!!
संजीव(इधर-उधर नजर दौड़ाते हुएे):- कोई देख तो नहीं रहा है न!!
राजू:- कोई नहीं देख रहा है। खा लिजिये।
संजीव(बरफ वाला से):- निकालो फिर।।
(उसके बाद बरफ वाला दोनों को बरफ देने के लिए बरफ निकालता है। बरफ वाला पहला बरफ संजीव को देता है। संजीव दाहीने हाथ से बरफ लेते है और खाने लगता है। वैसे तो राजू दाहीने हाथ से ही छाता पकड़े होता है लेकिन दाहीने हाथ में बरफ लेने के लिए राजू बायें हाथ से छाता पकड़ लेता है और दाहीने हाथ में बरफ लेता है। फिर राजू बरफ वाला को पैसा देने के लिए कुछ देर के बरफ भी बायें हाथ में रख लेता है और अपने कमीज के जेब से पैसा निकाल कर उसको देता है और बोलता है)
राजू:- ये लिजिये आपके पैसे।
(बरफ वाला पैसा जेब में रखता है और वहाँ से पैदल ही आगे की ओर बढ़ता है। फिर राजू भी बरफ दाहीने हाथ में लेकर खाने लगता है। दोनों चाव से बरफ खा रहे होते है। तभी संजीव के फोन की घंटी बजती है। फोन उसके माँ की होती है। वह राजू से थोड़ा अलग होता है और एक हाथ में बरफ लिए दूसरे हाथ से फोन कान में लगा कर बात करने लगता है।)
संजीव:- हैल्लो, मम्मी प्रणाम।
मम्मी फोन में:- कहाँ है रे बजरखसुआ??
संजीव:- क्या मम्मी हम आपको प्रणाम किये है, आशीर्वाद तो दिजीये।
मम्मी:- आशीर्वाद गया तेल लेने। पहिले ई बताओ कि कहाँ है??
संजीव:- रजुआ के साथ आम के बगवानी में जा रहे है।
मम्मी:- का है आम के बगवानी में??
संजीव:- कुछ नहीं बस ऐसे ही, थोड़ा टाइम पास करने।
मम्मी:- आज घर आओ बेटा, तुम्हारा सारा टाइम पास निकालते है।
(उसके बाद मम्मी फोन काट देती है। संजीव अपने कान से फोन हटाता है और बुदबुदाता है)
संजीव:- यार, ये  बुढ़ा-बुढ़ी का रोज पारा गर्म ही रहता है। लगता है अब कोई दूसरा आशियाना खोजना पड़ेगा।
(उसके बाद संजीव फोन अपने जेब में रखता है और आगे देखता है तो पाता है कि राजू बड़ी-बड़ी आँखें करके उसकी तरफ हसरत की निगाह से देख रहा होता है। वह उसे देख कर बोलता है।)
संजीव:- का हुआ रे? काहे अईसे देख रहा है??
राजू (हँसते हुएे) कुछ नाही भईया! बरफ बड़ा ही मीठ था। आप नही खाये अभी तक! हम त पुरा खा गए।
संजीव:- वो हम फोन से बात करने लगे है माँ से,, हम भी खा ही रहे है।
(उसके बाद संजीव बरफ खाने लगा। फिर राजू उससे कहता है।)
राजू:- एक बात कहे भईया जी।
संजीव:- कहो!!
राजू:- आ बुरा तो नहीं न मानियेगा।
संजीव (बरफ खाते हुएे):- क्या??
राजू:- खिसीआईगा नहीं न।
संजीव:- नहीं खिसीआयेंगे। बोलो का बात है!!
राजू:- बरफ बहुते ही मीठा है।
संजीव:- हाँ, वो तो है।
राजू:- तो अपना बरफ में से जरा हमको चिखाईये न।
संजीव:- साला, दरिद्र, छुदर आदमी। अपना खा लिया अब हमरा पर भीड़ा हुआ है।
राजू:- थोड़ा सा खिलाईये न भईया जी! का हो जायेगा??
संजीव:- ना!!
राजू:- थोड़ा सा।
संजीव:- थोड़ा भी नहीं।
राजू:- क्या भईया जी थोड़ा सा खिला दिजियेगा तो क्या हो जायेगा।
संजीव:- शरम नहीं आ रहा है।
राजू:- शरम तो आपको आना चाहिए। हमारा ही पईसा लगा है और हम को ही नहीं खिला रहे है।
संजीव:- आ गए न अपनी औकात पर! ले साला तू ही ठूँस।
(यह बोल कर संजीव बचा-कुचा बरफ राजू को दे देता है। राजू जल्दी-जल्दी सारा बरफ चट कर गया। उसके बाद संजीव उससे बोलता है।)
संजीव:- हो गया आत्मा तृप्त।।
राजू:- जी भईया जी!!
संजीव:- तो अब चले।।
राजू:- हाँ चलिये..।।
(उसके बाद दोनों आगे बढ़ जाते है।)

बदला,, सीन:- 02
(सरोज और शीला एक-दूसरे से प्यार करते है। शीला सरोज से छुप कर रोज आम के बगवानी में मिलने आती है। सरोज और शीला एक पेड़ के नीचे खड़े हो कर एक-दूसरे से बात कर रहे होते है। सरोज अपने दोनों हाथों से शीला का दोनों हाथ पकड़े हुआ होता है और शीला से बोलता है)
सरोज:- कल तुम काहे नहीं आयी थी हमसे मिलने??
शीला:- का कहे कल बापू घर पर ही थे। इसलिए तुमसे मिलने नहीं आ पाये।
सरोज:- तुम जानती हो न हम तुमरे बगैर एक पल भी नही रह सकते। फिर भी तुम हमसे मिलने नहीं आती हो। तुम हमसे मिलने नही आती हो तो हमारा कलेजा धक-धक करने लगता है। हम तुमरे बगैर एक पल भी नहीं रह सकते है शीला। हम तुम्हारे बगैर मर जायेंगे।
शीला(सरोज के मुँह पर अपना हाथ रखते हुएे):- अईसा काहे बोलते हो? मरे तोहार दुश्मन। जी तो हम भी नहीं सकते है तुम्हारे बगैर। लेकिन का करे, जीना पड़ता है।
सरोज:- हाँ शीला! हमको तो बहुत डर लग रहा है शीला!!
शीला:- काहे? काहे डर लग रहा है।
सरोज:- कही तुम मुझे छोड़ कर न चली जाओ।
शीला:- तुम बेकार में डर रहे हो। अईसा कुछ भी नहीं होगा।
सरोज:- हाँ, तुम मुझे छोड़ कर मत जाना शीला, नहीं तो मैं जीते जी मर जाऊँगा।
शीला:- कभी नहीं जायेंगे।
(उसके बाद दोनों गले मिलते है। संजीव और राजू पगडंडी पर चलते हुएे उसी आम के बागवानी की ओर जा रहे होते है। वह दोनों कुछ दूर आगे बढ़ते है कि उनकी नजर सरोज और शीला पर पड़ती है। दोनों एक-दूसरे से लिपटे होते है। यह देख कर राजू संजीव से बोलता है।)
राजू:- भईया, कुछ दिखाई पड़ा।
संजीव(आँखों से चश्मा हटाते हुएे) :- दिखाई और सुनाई दोनों पड़ा। अरे तेरी, ये तो नथुनी महतो की बेटी शीला है। साथ में ये लड़का कौन है?
राजू:- वो शंकर माँझी का बेटा है भईया जी, सरोज,, जिसने आपको मारा था। यह नथुनी की बेटी शीला के साथ इश्क फरमा रहा है।
संजीव:- अच्छा! हाँ याद आया। हम कईसे भूल सकते है वो दिन!! इसी लड़की के चक्कर में तो सर पर जूता-चप्पल पड़ा था। अपने मजनुआ से पिटवाई थी हमको..!!!
(और यह बोलते हुएे वह फ्लैश बैक में खो जाता है और पिछे की घटना याद करने लगता है। फ्लैश बैक की कहानी अगले सीन में)

बदला,, सीन:- 03
(फ्लैश बैक की कहानी…)
(शीला एक सुनसान रास्ते से हाथ में कुछ कॉपी-किताब अपने सीने से लगाए हुएे पढ़ने जा रही होती है। तभी संजीव हाथ में एक गुलाब का फूल लिए उसके आगे आकर खड़ा हो जाता है और शीला से बोलता है।)
संजीव:- हाय डार्लिंग!!
शीला:- ये क्या बदतमीजी है।
संजीव(शीला के गालों पर गुलाब फेरते हुएे):- बदतमीजी नहीं जान, प्यार बोलो प्यार..।।
शीला(अपने गाल पर से उसका हाथ हटाते हुएे):- अच्छा!!
संजीव(आँहें भरते हुएे):- हाँ मेरी जान, प्यार। मेरे दिल में तुम्हारे लिए बहुत प्यार है। मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ मेरी जान।।
शीला:- मैं तुम जैसे लड़कों को बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ। रास्ता छोड़ो मेरा।
संजीव:- ऐसे कैसे छोड़ दे! आज बड़ी मुद्दतों के बाद मिली हो। आज ऐसे ही नहीं छोड़ूँगा तुम्हें।।
शीला(डरते हुएे):- तो फिर क्या करोगे मेरे साथ।।
संजीव:- प्यार करेंगे तुम्हारे साथ, पुरा प्यार और वो भी फिल्मी स्टाईल में।
शीला:- प्यार ही करना है तो किसी और साथ करो। मेरे पिछे काहे को पड़े हो।
संजीव:- काहे की हम तुमको पसंद करते है। तुम हमको बहुत अच्छी लगती हो। तुम्हारी अदा, रंग-रुप, चाल-ढ़ाल, बात करने का तरीका हमको बहुत अच्छा लगता है। हमको तुमसे सच्चा प्यार हो गया है और हम तुमसे विवाह करना चाहते है।
शीला:- अच्छा!! तो बात यहाँ तक पहूँच गयी है।।
संजीव:- हाँ।
शीला:- तुमने अपनी राय तो मुझे बता दी लेकिन मुझसे मेरी राय एक बार भी नहीं पुछा!!
संजीव:- क्या है तुम्हारी राय? तुम एक बार मुझे हाँ कर दो मैं तुम्हें रानी बना कर रखूँगा रानी। कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दूँगा। मेरे पास बहुत पैसा है। मैं करोड़पति बाप इकलौता बेटा हूँ। गाड़ी-बांगला, ज़मीन-जायदाद सब कुछ है मेरे पास। तुम बहुत खुश रहोगी मेरे साथ।।
शीला:- मेरी ओर से भी हाँ है। जब सामने इतना सुन्दर और रईस लड़का हाथ में गुलाब का फूल लिए अपनी मोहब्बत का इजहार करे तो मैं तो क्या कोई भी लड़की नहीं नकार सकती।
संजीव(पिछे की ओर घुम कर):- आईला मेरी तो निकल पड़ी।
(फिर वो शीला की तरफ घुम कर बोलता है।)
संजीव:- तो फिर बोलो न!!
शीला:- क्या??
संजीव:- वही जो एक प्रेमिका अपने प्रेमी से बोलता है।
शीला(शर्मा कर अपने दाँतों से एक अंगुली को दबाती हुई):- हाय दईया,, मुझे शर्म आती है। तुम ही बोल दो न।।
संजीव :- आई लव यू शीला!!
शीला:- शीला नहीं, जानु बोलो जानु।।
संजीव:- ओह सॉरी, आई लव यू जानु।।
शीला:- लव यू टू जानु।
(यह बोल कर शीला संजीव के गले लग जाती है। फिर कुछ पल बाद उससे अलग होती है और संजीव से बोलती है।)
शीला:- अब मैं जा रही हूँ। मुझे कॉलेज के लिए देर हो रही है।
संजीव:- ठीक है। शाम को मिलोगी।
शीला:- हाँ।
संजीव:- ओके, तो शाम को पाँच बजे मैं पार्क में तुम्हारा इंतजार करूँगा।
शीला:- ओके।।
(यह बोल कर शीला वहाँ से कॉलेज चली जाती है और संजीव भी मस्ती में उछलता हुआ वहाँ से चला जाता है।)

बदला,, सीन:- 04
(शाम के पाँच बज रहे होते है। संजीव पार्क में एक बेंच पर बैठा शीला का इंतजार कर रहा होता है। संजीव के आँखों पर चश्मा भी लगा होता है। तभी उसे शीला वहाँ आती दिखाई देती है। शीला को आता देख कर वह खड़ा हो जाता है, दो-चार कदम आगे बढ़ता है और उससे बोलता है।)
संजीव:- कहाँ रह गयी थी जानु? मैं कबसे यहाँ बैठा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।
शीला:- वो मैं भी किसी का इंतजार कर रही थी।
संजीव:- किसका इंतजार कर रही थी? मैं तो यहाँ हूँ।।
शीला:- वो मैं अपने बॉयफ्रेंड का इंतजार कर रही थी।
संजीव:- मतलब!!
शीला(थोड़ा पिछे की तरफ घुम कर सरोज की ओर इशारा करते हुए):- मतलब ये कि यह मेरा बॉयफ्रेंड है, सरोज,, जिसे मैं प्यार करती हूँ। अब ये एक-एक कर तुम्हारी सारी हड्डिया तोड़ेगा। ताकी तुम दोबारा किसी लड़की को हवस की निगाह से न देख सको।
संजीव:- इसका मतलब तुम मुझसे प्यार नहीं करती। सुबह तुम मुझे उल्लू बना रही थी।
(इतने में सरोज के तीन-चार दोस्त संजीव को घेर लेता है। फिर शीला उससे बोलती है।)
शीला:- हाँ!! अगर उस वक्त मैं तुम्हें इनकार करती या तुम्हें थप्पड़ मारती तो तुम मेरे साथ गलत सलूक करते। मैं अकेली थी, मैं खुद को बचा नहीं पाती। इसलिए मैंने दिमाग से काम लिया और तुम्हें चालाकी से यहाँ पर बुलाया। ताकी तुम्हें मजा चखा सकुँ।
संजीव(रोने का एक्टिंग करते हुए):- ये तुमने ठीक नहीं किया शीला डार्लिंग!! अब ये लोग मुझे मारेंगे।।
(यह बोल कर संजीव रोने लगता है। फिर सरोज अपने दोस्तों से बोलता है।)
सरोज:- देख क्या रहे हो? मारो इसे!!
(उसके बाद सभी संजीव को बेरहमी से मारने लगता है। मार खाते-खाते वह ज़मीन पर गीर जाता है। उसके बाद लड़के उसे मारना छोड़ देते है। उसके आँखों से चश्मा भी गीर जाता है। कुछ देर बाद वह चश्मा उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है तभी शीला वहाँ आती है, चश्मा उठा कर अपने आँखों पर लगा लेती है और संजीव से बोलती है।)
शीला:- आ गया स्वाद!! अभी और करोगे मुझसे प्यार??
संजीव(कराहते हुएे):- नहीं बहन, अब मैं तुमसे तो क्या किसी से भी प्यार करने के लायक नहीं रहा। अब तुम जाओ बहन और खुश रहो।।
(उसको बाद वह सरोज से बोलती है।)
शीला:- चलो डार्लिंग!!
(फिर सरोज और शीला वहाँ से निकल जाते है। उनके निकलने के बाद संजीव किसी भी तरह उठता है, खड़ा होता है और कराहते हुएे बोलता है)
संजीव:- बाप रे बाप, मार डाला सालों ने। मार के आँख सुजा दिया और नाक से खून भी निकाल दिया। मार के पैर भी तोड़ दिया रे।बहुत दर्द हो रहा है। इन लड़कियों का कोई भरोसा नहीं। ये हमें जाल में फँसा कर हमें लूटती है, हमें मारती है। इन पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। इसने बहुत ही अच्छा सबक सिखाया। आज के बाद इसके इर्द-गिर्द भी नहीं मँडराऊँगा। ओह मम्मी, बहुत दर्द हो रहा है।
(यह बोलते हुएे वह वहाँ से कराहते हुएे घर की ओर चला जाता है।)

बदला,, सीन:- 05
(फ्लैश बैक के बाद की कहानी)
(संजीव अपने अतित को याद कर रहा होता है। तभी राजू उसके शरीर को डुलाते हुएे उससे बोलता है।)
राजू:- कहाँ खो गए भईया जी।
(तब संजीव अपने अतित से बाहर आता है और बोलता है।)
संजीव:- कही नहीं। वो कुछ पुराने दिन याद आ गए थे। वो शीला का बाप सारा दिन दूसरे के खेत में मजुरी करता है और यहाँ उसकी बेटी गुलछरा उड़ा रही है। हम माँगते है तो देती नहीं है और शंकर के बेटा पर लूटा रही है।
राजू:- का? का माँगते है??
संजीव (राजू के सर पर एक थप्पड़ लगाते हुएे):- अरे बुरबक दिल!! अऊरी का। तु का समझ रहा है बे।
राजू:- हम त कुछ अऊरी ही समझ रहे थे।
संजीव:- सोच बदलो साले, तबही तो देश बदलेगा।
राजू:- तो पहिले आप काहे नहीं बदलते… सोच….
संजीव:- बदल गया। जरा फोनवा निकालो तो अपना।।
राजू:- काहे??
संजीव:- बस दो-चार फोटो उतार लेते है इसके बाप को दिखाने के लिए। ये ससुरी खुद को हीरोईन समझती है। हम एक बार इसको परपोज किये थे अपने बॉयफ्रेंड से बहुत पिटवाई थी हमको। आज मौका मिला है। अब इसको मजा चखाता हूँ।
(राजू झट से मोबाइल निकाल कर संजीव को देता है और बोलता है।)
राजू:- ये लिजिये भईया जी।
(संजीव मोबाइल में उन दोनों की तस्वीर खिचने लगता है। कुछ तस्वीर खिच जाने के बाद वह राजू से बोलता है।)
संजीव:- हाँ हो गया। अब चलो तो इसके बाप के पास। आज इसका भांडा फोरते है।
राजू:- हाँ चलिये..!!!
(उसके बाद दोनों शीला के घर जाने के लिए आगे आगे बढ़ते है।)

बदला,, सीन:- 06
(शीला के पिता नथुनी महतो घर के बाहर एक कुरसी पर बैठ कर अखबार पढ़ रहे होते है। तभी संजीव और राजू वहाँ पहूँचता है और नथुनी महतो से बोलता है।)
संजीव:- राम-राम काका।
नथुनी:- राम-राम बेटा, कैसे हो??
संजीव:- ठीक हूँ काका!!
नथुनी:- अच्छा, आओ बैठो..!!
(वहाँ पर दो कुरसी खाली होता है। संजीव एक कुरसी पर बैठ जाता है और राजू भी छाता बंद कर कुरसी पर बैठ जाता है। उन दोनों के बैठने के बाद नथुनी महतो फिर से बोलते है।)
नथुनी:- कहो, आज इधर कैसे आना हुआ??
संजीव:- बस आप लोगो से मिलने का जी चाहा, सो आ गया।
नथुनी:- सब कुशल-मंगल तो है??
संजीव:- जी, सब ठीक है। (इधर-उधर नजर दौड़ाते हुएे) काकी कही नजर नहीं आ रही है।
नथुनी:- वो छत पर गेंहूँ पसारे हुई थी, उसी को समेट रही है।
संजीव:- अच्छा!!
(तभी नथुनी का बेटा लखन बाहर निकलता है। लखन को देख कर संजीव और राजू कुरसी से उठ खड़े होते है। संजीव अपने आँखों पर से चश्मा हटा लेता है। लखन संजीव और राजू को देख कर बोलता है।)
लखन:- तू यहाँ का कर रहा है रे??
संजीव:- देख नाही रहे हो काका से बात कर रहा हूँ। काका से मिलने आये है।
लखन:- काका से तुमको कौन काम है??
संजीव:- काम तो अईसा है कि बता दूँगा तो पैरों तले ज़मीन खिसक जायेगी।
लखन:- साफ-साफ बोलो, पहेली मत बुझाओ!!
संजीव:- तो सुनो। आज कल तुम्हारी बहन कहाँ जाती है, किससे मिलती है,, कुछ खबर है तुम लोगों को।
लखन (संजीव के पास जाकर उसका कॉलर पकड़ते हुएे):- अरे साला, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई अपनी ज़बान से मेरी बहन का नाम लेने का।
संजीव (लखन का हाथ अपने गर्दन पर से हटाते हुएे):- थोड़ा हाथ संभाल कर रखीये बाबू साहेब, नही तो हमारा उठ गया न तो ठीक नहीं होगा। ज़िन्दगी भर पानी भी नहीं माँगीएगा। (उसके बाद वह नथुनी महतो की ओर घुम कर उससे बोलता है) आपको कुछ मालूम है कि आपकी बेटी शीला कहाँ जाती है आज कल??
नथुनी:- वो तो हमको बता कर जाती है कि राधा के साथ आम के बागवानी में जा रही है।
संजीव:- और आम के बागवानी में क्या करती है?
नथुनी:- आम की रखवाली, और का??
संजीव:- नही, वो आम का रखवाली करने नहीं जाती है।
नथुनी:- तो फिर क्या करने जाती है??
संजीव:- बता देंगे तो परान निकल जायेगा।
नथुनी:- अरे बताओ बेटा, क्या करने जाती है?
नथुनी:- वो शंकर माँझी के बेटा सरोज माँझी से आँखों में आँखें डाल कर इश्क लड़ाने जाती है और एक-दूसरे से चिपक कर पुरे बागवानी में घुमती है।
लखन:- ऐ हरामजादा, तुम्हारी इतनी हिम्मत की तू मेरे बहन के बारे में ऐसी बात बोलेगा।
संजीव:- हमारे पास सबूत है बाबू साहेब!!
लखन:- क्या सबूत है? हमें भी दिखाओ।
(उसके बाद संजीव मोबाइल निकाल कर नथुनी और लखन को शीला और सरोज का फोटो दिखाता है। नथुनी अपनी बेटी की करतूत देख कर गुस्से में आँख लाल कर लेता है। लखन को भी बहुत गुस्सा आ रहा होता है। उसके बाद संजीव अपना फोन जेब में रख लेता है और नथुनी से बोलता है।)
संजीव:- जवान बेटी है, थोड़ा ध्यान दिजीये। कहाँ जाती है, किससे मिलती है, और क्या-क्या करती है?? चलते है.. जय राम जी की।
(उसके बाद संजीव और राजू वहाँ से जाने के लिए आगे बढ़ते है। संजीव अपना चश्मा अपने आँखों पर लगाता है। राजू छाता खोलता है और छाता ओढ़ कर वहाँ से रवाना हो जाते है। उनके जाने के बाद लखन नथुनी से बोलता है।)
लखन:- पानी अब सर के उपर हो गया है बाबू जी। अब कुछ करना पड़ेगा नहीं तो हम कही के नहीं रहेंगे।
नथुनी:- तुम ठीक कहते हो बेटा, हमें अब कुछ करना ही होगा।
(तभी वहाँ शीला आ पहूँती है। शीला को देख कर लखन आग-बबुला हो जाता है। शीला वहाँ बिना रुके अंदर की ओर जाने लगती है। तभी उसका भाई लखन उसे गुस्से में आवाज देता है।)
लखन:- ठहरो!!
(यह सुन कर शीला रूक जाती है। फिर लखन उससे बोलता है।)
लखन:- कहाँ से आ रही हो अभी।।
शीला:- वो मैं राधा के साथ आम के बागवानी में गयी थी।
लखन:- क्या करने गयी थी आम के बागवानी में? किससे मिलने गयी थी?
(यह सुन कर शीला चुप हो जाती है। वह कुछ नहीं बोलती है। लखन फिर उससे गुस्से में पुछता है।)
लखन:- बताओ! क्या हुआ? बताती क्यों नहीं!!
शीला:- वो मैं सरोज से मिलने गयी थी। मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ।
नथुनी(आगे बढ़ते हुएे):- कमिनी, यह बोलने से पहले तेरे जीभ क्यों नहीं कट गए।
लखन:- यह ऐसे नहीं मानेगी बाबू जी।
(यह बोल कर लखन उसके पास जाता है, उसके बाल पकड़ कर खिचता है और उसे मारते हुएे अंदर ले जाता है। नथुनी भी उसके पिछे जाता है। शीला रोती है, चिखती है, बिलखती है। वह रो-रो कर बोलती है।)
शीला:- मुझे छोड़ दिजीये भईया, छोड़ दिजीये मुझे! मैं सरोज से बहुत प्यार करती हूँ। मैं उसके बिन मर जाऊँगी भईया। मुझे छोड़ दिजीये प्लीज।।
(लखन उसे खिचते हुएे अंदर ले जाता है। उसे एक कमरे के पास ले जाकर बोलता है।)
लखन:- अब तू जी चाहे मर, तुझे अब ज़िन्दगी भर इसी कमरे में रहना है।
(यह बोलते हुएे लखन उसे उस कमरे में धक्का दे देता है और कमरे को बाहर से बंद कर उसमें ताला मार देता है और बोलता है।)
लखन:- अब देखता हूँ यह कैसे मिलती है सरोज से।।
(यह बोल कर लखन और नथुनी दोनों वहाँ से चले जाते है।)

बदला,, सीन:- 07
(अगले दिन सरोज एक तालाब के किनारे बैठ कर शीला का इंतजार कर रहा होता है। तभी एक बारह साल का लड़का छोटू उसके पास आता है और उससे बोलता है।)
छोटू:- सरोज भईया!!
सरोज(खड़े होते हुएे):- अरे छोटू तुम! तुम यहाँ कैसे?
छोटू:- शीला दीदी को कल उसके भईया और बाबूजी ने बहुत मारा है और उसे एक कमरे में बंद कर दिया है। वह बहुत रो रही है। अब वह तुमसे नहीं मिल सकती। उसने यह कहलवाया है कि तुम उसे वहाँ से आजाद करके ले आओ नहीं तो वह मर जायेगी। उसने तुम्हारे लिए यह चिट्ठी दिया है।
(यह बोलते हुएे छोटू ने अपने जेब से एक चिट्ठी निकाल कर उसे दिया। सरोज चिट्ठी लेकर पढ़ने लगता है और छोटू वहाँ से चला जाता है। चिट्ठी में लिखा होता है।)
चिट्ठी:-       कल बहुत मार खाये है बाबूजी और भाई से
            बहुते दर्द हो रहा है माथा, कमर अऊरी कलाई में

                 बाल भी खिचा है और थप्पड़ भी लगाया है
                  मेरे बाद भईया ने तुमको निशाना बनाया है

                    बहुत पिटाई पड़ा है जानु तोहरा प्यार में
               क्या इश्क करने की यही सजा होती है संसार में

                अगर यही सजा है तो मुझे ये सजा मंजूर है
             किसी से मोहब्बत करना भी क्या कोई कुसुर है

              अपने खून और आँशु से यह खत लिख रही हूँ
  तुम्हारे याद में बहुत रो रही हूँ और दीवार से माथा पिट रही हूँ

                 आँखों में मेरे बह रहे है लहू बन कर पानी
                तुम्हारे बिना मर जायेगी तुम्हारी शीला रानी

                 मुझे आकर यहाँ से कही ले चलो बहुत दूर
           अब तुम्हारे ही बाँहों में जीना और मरना है मेरे हुजूर

      मर जायेंगे, मिट जायेंगे, लेकिन तुमसे जुदा हो नहीं सकते
              लाख पहरा बिठा ले दुनिया वाले मोहब्बत पर,,,
                        लेकिन खुदा हो नहीं सकते..!!!

प्रिये सरोज, बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि मैं अब तुमसे नहीं मिल सकती। कल मेरे भईया और मेरे बाबूजी ने मुझे बहुत मारा-पिटा और एक कमरे में बंद कर दिया। मेरा यहाँ पर दम घूँट रहा है। मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह सकती। तुम मुझे यहाँ से छूड़ा कर ले जाओ नहीं तो मैं मर जाऊँगी। सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी शीला। लव यू, अपना ख्याल रखना।। मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा। मिस यू जानु।।
(यह खत पढ़ कर वह थोड़ा मायूस हो जाता है। और उदास भाव से बोलता है।)
सरोज:- अब क्या होगा??
(उसके बाद उसके पिछे से एक आवाज आती है:- वही होगा जो हम चाहेंगे। सरोज पिछे मुड़ कर देखता है तो पाता है कि वहाँ संजीव खड़ा होता है। संजीव को देख कर सरोज बोलता है।)
सरोज:- तुम??
संजीव:- हाँ मैं। उस दिन पार्क में जिस तरह तुमने और तुम्हारे साथियों ने मुझे मारा, उस वक्त मुझे बहुत गुस्सा आया। उसी दिन मैंने अपने मन में ठाना कि एक दिन मैं तुमसे जरूर बदला लूँगा। लेकिन मैं गलत था। मैं तुमसे क्या बदला ले सकता हूँ। मोहब्बत करने वालों से भला कौन बदला ले सकता है। मैं हार गया। तुम्हारी यह दशा देख कर मुझे बहुत दया आ रही है। भले ही शीला मुझसे प्यार नहीं करती है पर मैं आज भी उससे ही प्यार करता हूँ। और मैं एक प्रेम करने वाले को ऐसे नहीं देख सकता।
सरोज:- आखिर हम कर भी क्या सकते है??
संजीव:- बहुत कुछ कर सकते है!!
सरोज:- मतलब!!
संजीव:- मतलब.. इधर बैठो तुम्हें सब समझाता हूँ।
(उसके बाद दोनों वही पास में ही जमीन पर बैठ जाते है। वह जमीन पर बैठते ही है कि राजू भी वहाँ आ जाता है। उसके एक हाथ में थैली और दूसरे हाथ में छाता होता है। राजू वहाँ आकर बोलता है।)
राजू:- ये लिजिये भईया जी, ले आया आपका सामान।
संजीव:- बहुत अच्छा! बैठ इधर!!
(उसके बाद राजू थैली को नीचे रखता है, छाता बगल में रखता है और वह भी वहाँ बैठ जाता है। वहाँ बैठने के बाद वह थैली का सामान निकालता है। थैली में एक शराब की बोतल होती है और कुछ ग्लास होते है। राजू शराब की बोतल और ग्लास निकालता है और संजीव की ओर बढ़ाता है। संजीव बोतल खोलता है, ग्लास में पेग बनाता है और सरोज की तरफ बढ़ाता है तथा सरोज से बोलता है।)
संजीव:- ये लो तुम्हारे दर्द की दवा!!
सरोज:- मैं शराब नहीं पीता दोस्त।।
संजीव:- अरे एक बार पी कर तो देखो, तुम्हारा सारा दुख-दर्द खत्म हो जायेगा। उसके बाद फिर तुम्हें कोई टेंशन नहीं होगा। तुम्हारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा आ जायेगी, जिससे तुम सारी दुनिया से लड़ सकते हो।
सरोज:- ठीक है अगर ऐसी बात है और यह बात तुम कहते हो तो आज मैं पीऊँगा। तुम्हारी दोस्ती की खातिर और शीला के प्रेम की खातिर आज मैं पीऊँगा।।
(उसके बाद सरोज ग्लास उठाता है और एक घूँट में ही सब पी जाता है। फिर संजीव दूसरा पेग बना कर उसे देता है। वह दूसरी बार भी एक ही घूँट में ही सब पी जाता है। इसी तरह तीन, तीन से चार और चार से पाँच। पाँच पेग पीने के बाद वह पुरी तरह नशे में आ जाता है। उसके बाद वह संजीव से बोलता है।)
सरोज:- दोस्त मैं तुम्हें बहुत बुरा समझता था। लेकिन तुम बहुत अच्छे हो। अगर आज तुम नहीं होते तो मेरा क्या होता। थैंक यू दोस्त। थैंक यू वेरी मच।
संजीव:- इसमें थैंक यू क्या बात है? ये तो मेरा फर्ज था। दोस्त ही तो दोस्त के बुरे वक्त में काम आता है।
सरोज:- ये बात भी सही कहा तुमने। एक दोस्त ही दूसरे दोस्त के काम आता है।
संजीव:- हाँ।।
सरोज:- मैं शीला से बहुत प्यार करता हूँ। मैं उसके बिना नहीं रह सकता यार!!
(यह बोल कर सरोज रोने लगता है। संजीव उसे चुप कराता है और उससे बोलता है।)
संजीव:- शांत हो जाओ। मैं आ गया हूँ न, अब सब ठीक हो जायेगा।
सरोज:- क्या खाक ठीक होगा? उसके बाप और भाई ने उसे कमरे में कैद करके रखा है और उसे बहुत मारा भी है। मैं क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आता यार।।
संजीव:- अब इसका एक ही उपाय है।
सरोज:- क्या??
संजीव:- तुम चिख-चिख कर दुनिया वालों को और उसके बाप-भाई को बता दो कि तुम शीला से प्यार करते हो और तुम किसी से भी नहीं डरते, नाही उसके भाई से और नाही उसके बाप से। तुम आज अपनी मोहब्बत का ऐलान और आगाज कर दो। तुम्हारा तेवर देख कर उसका बाप-भाई भी तुम्हारे आगे सर झुका देगा।
सरोज:- हाँ, तुम ठीक कहते हो। अब यही करना होगा। अब अपने मोहब्बत का ऐलान और आगाज करने का वक्त आ गया है।
संजीव:- हाँ, तुम दिखा दो कि तुम भी किसी से कम नहीं हो।
सरोज(खड़े होते हुएे):- ठीक है दोस्त,, तुम लोग एंजॉय करो, मैं अपने मोहब्बत का ऐलान करके आता हूँ।
संजीव:- ठीक है दोस्त, अच्छे से जाना।।
सरोज:- अरे तुम टेंशन मत लो दोस्त। तुम्हारा ये दोस्त आज आग लगा देगा आग।।
(इतना बोल कर सरोज वहाँ से चला जाता है। सरोज के जाने के बाद संजीव अपने जेब से मोबाइल निकालता है, किसी को कॉल लगाता है और कान में लगा कर बात करने लगता है।)
संजीव:- हैल्लो भईया जी, मैंने अपना काम कर दिया है और अब आगे का आप देख लिजिये।
फोन में से आवाज आती है:- ठीक है, आज आने दो साले को। आज उसके जीवन का आखिरी दिन होगा।
(उसके बाद संजीव फोन अपने जेब में रख लेता है। वह खड़ा होता है, राजू भी खड़ा होता है। फिर वह राजू से बोलता है।)
संजीव:- चलो आज मौत का तांडव देखते है।
राजू:- चलिये भईया जी।
(उसके बाद राजू छाता खोलता है। दोनों छाता ओढ़ लेते है और लखन के घर की ओर बढ़ते है।)

बदला,, सीन:- 08
(सरोज पुरी तरह शराब के नशे में धुत होता है। वह नथुनी महतो के घर के बाहर पहूँचता है और चिख-चिख कर दोनों को ललकारने लगता है। उसके शब्द होते है।)
सरोज:- ऐ नथुनी महतो, बाहर निकल! कौन से बिल छुपा हुआ है। ऐ लखन तू भी बाहर निकल। किस बिल में छुपे हुएे हो दोनों बाप-बेटे। मुझसे डर लग रहा है क्या? आज मैं तुम्हारे सामने और सारी दुनिया वालों के सामने अपनी मोहब्बत का ऐलान और आगाज करने आया हूँ। मैं शीला से प्रेम करता हूँ और उसे यहाँ से ले जाने आया हूँ। और मैं हर हाल में उसे यहाँ से लेकर जाऊँगा। अगर तुझमें दम है तो रोक के दिखाओ।
(सरोज की बात सुनने के बाद लखन और उसके तीन-चार दोस्त घर से बाहर निकलते है। सबके हाथ में डंडा होता है। वे लोग सरोज के पास पहूँचते है। सरोज उन लोगों को देख कर फिर बोलता है।)
सरोज:- अच्छा!! निकल गए बाहर! हाथ में डंडा भी है। और तुमने मुझे मारने के लिए अपने पालतू कुत्तों को भी बुलाया है। लेकिन तुम शायद भूल रहे हो,, मैं शेर हूँ शेर!! इन कुत्तों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
(सरोज की बात सुनने के बाद बिना कुछ बोले ही लखन और उसके दोस्त उस पर टूट पड़ते है। लखन और उसके दोस्त बड़ी बेरहमी से उसे मारने लगते है और वह कराहने लगता है। मार खाते-खाते वह जमीन पर गीर जाता है। उसके बाद लखन और उसके दोस्त उसे मारना छोड़ देते है और फिर लखन उससे बोलता है।)
लखन:- आज ज़िन्दा छोड़ रहा हूँ। लेकिन आईन्दा कभी अपनी जूबान से मेरी बहन का नाम लिया तो जान से मार दूँगा। दफा हो जा यहाँ से।
(उसके बाद लखन और उसके दोस्त वहाँ से चले जाते है। संजीव और राजू एक पेड़ के पिछे छुप कर यह नजारा देख रहा होता है। जब लखन सरोज को मार कर गिरा देता है, उसे धमकी देता है और वहाँ से चला जाता है। उसके बाद संजीव भी वहाँ से चला जाता है। वह राजू से बोलता है।)
संजीव:- चलो दोस्त, आज अपना बदला पुरा हुआ।।
(यह बोलते हुएे वह अपने आँखों पर चश्मा लगाता है और वहाँ से जाने के लिए आगे बढ़ता है। राजू आगे बढ़ कर छाता खोलता है और दोनों छाता ओढ़ कर वहाँ से निकल जाते है। संजीव के जाने के बाद सरोज कराहते हुएे उठता है, खड़ा होता है, धीरे-धीरे चलते हुएे आगे बढ़ता है और बोलता है।)
सरोज:- ओह,, मार डाला आज इन कमीनों ने, सारा शरीर दुख रहा है। ओ माँ, नाक और मुँह से खून भी निकाल दिया। बड़ा दरद हो रहा है। अब कौन सा मुँह ले कर घर जाऊँगा। घर वाले पुछेंगे तो क्या जवाब दूँगा। चला भी नहीं जा रहा है। ओ माँ,, बहुत दर्द हो रहा है। क्या से क्या हो गया शीला डार्लिंग तेरे प्यार में??
मैंने तुझे प्यार किया हीरा समझ कर,,
और तेरे भाई ने मुझे काट डाला खीरा समझ कर..
बड़ी जालिम है ये दुनिया, प्यार करने वालों को मिलने नहीं देती!!
मैं जिस पर भरोसा किया उसने ही मुझे दगा दिया। यह तुमने ठीक नहीं किया संजीव! तुम ऐसा निकलोगे मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता। खैर जो होना था सो हुआ, आज के बाद अब किसी से प्यार नहीं करूँगा। किसी से भी नहीं।। और ना ही किसी पर भरोसा करूँगा। अब मैं जीवन भर बाल-ब्रह्मचारी ही रहूँगा। ना किसी से प्यार करूँगा और ना ही किसी से शादी करूँगा। अब घर चलने दो।।
(यह बोल कर सरोज वहाँ से चला जाता है।)

—————————The End————————  

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